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हिंदी दिवस प्रतियोगिता


सोचती हूँ
चांद कुछ झुक सा गया है
द्वार पर जाकर तुम्हारे रुक गया है।

सोचती हूँ
ये हवाएं झूठ कितना बोलती हैं
मेरे सारी बातें तुमसे बोलती हैं।

सोचती हूँ
तुमसे कुछ बातें करूँ
पर कहूँ तो क्या शुरू कैसे करूँ


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9 Comments

Wahhh बहुत ही सुंदर सृजन

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Pratikhya Priyadarshini

22-Sep-2022 11:14 AM

Bhut khoob 💐👍

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Achha likha hai 💐

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